मेरा दर्द कोई ना जाने....!


आपको सिर्फ मेरी खुशी मालूम, मेरा दर्द कोई ना जाने, फिर भी आपको शुक्रिया। यह दर्द किसी आम इंसान का होता, तो पचा भी जाता, लेकिन जब कर्नाटक के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन. संतोष हेगड़े यह बात कहे तो मन पसीजना लाजिमी है। भला वातानुकूलित कक्ष में बैठने वाले, सरकारी गाड़ी में आने-जाने वाले, राज्य सरकार की खिंचाई करने वाले लोकायुक्त को किस बात का दर्द?
दरअसल, उन्होंने यह दर्द मेरे एक एसएमएस के जवाब में बयां किया। मैंने ऐसे एसएमएस में कुछ यूं फरमाया था 'ये हवा आपकी हंसी की खबर देती है, मेरे दिल को खुशी से भर देती है, खुदा सलामत रखे आपकी हंसी को, क्योंकि आपकी खुशी हमें खुश कर देती है।' और लोकायुक्त हेगड़े साहब ने फौरन रिप्लाई कर अपना दर्द यूं बयां किया 'आपको सिर्फ मेरी खुशी मालूम, मेरा दर्द कोई ना जाने, फिर भी आपको शुक्रिया।' मैंने यह एसएमएस वेलेंटाइन डे पर बधाई और शुभकामना संदेश के साथ भेजा था। और इस मोहब्बत के दिन मैंने उनसे खुशियां बांटनी चाहीं। ...तो क्या यह मान लिया जाए कि अक्सर खुश मिजाज-जिंदादिल नजर आने वाले लोकायुक्त हेगड़े पीडि़तों के दर्द-ए-हाल का निपटारा करते हुए अपने आपको पीडि़त समझने लगे?
खैर, लोकायुक्त हेगड़े साहब के इस्तीफा देने के बाद आखिर विजयी किसकी हुई? क्या यह विजयी कर्नाटक में उच्च पदों पर विराजित उन भ्रष्ट अफसरों की मानी जाएं, जो लोकायुक्त के इस्तीफे के बाद जश्न में मूड से बाहर नहीं निकल रहें या फिर राज्य सरकार की, जिसने लोकायुक्त किसकी भी अहम जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की। लोकायुक्त हेगड़े ने राज्य की लोकायुक्त संस्था को जिस मुकाम पर पहुंचाया है उसका देश भर में कहीं कोई सानी नहीं। अगस्त 2006 में इस महत्वपूर्ण पद पर बैठने के बाद उन्होंने राज्य के भ्रष्ट नौकरशाहों पर जिस कदर नाक में नकेल कसी उससे अक्सर अदने से कर्मचारी से लेकर अफसर तक भयभीत रहें। अगर राज्य में इससे पहले का इतिहास उठाकर देखा जाए, तो हेगड़े से पहले के लोकायुक्तों ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की। जबकि राज्य में लोकायुक्त संस्था के गठन के शुरुआती दौर में लोकायुक्त के पास स्वत: संज्ञान अधिकार के आधार पर कार्रवाई करने का हक था, लेकिन कोई तीर नहीं मारा। इससे कुछ साल बाद ही राज्य सरकार ने यह अधिकार वापस ले लिया।
हालांकि, अभी 30 जुलाई तक लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े पद पर बने रहेंगे। इस अवधि के बीच समस्त लंबित कामकाज को अंतिम रूप देंगे। इसमें उत्तरी कर्नाटक में बाढ़ पीडि़तों के पुनर्वास में हुए करोड़ों रुपए के घपले की बहुप्रतीक्षित जांच रिपोर्ट भी है। लेकिन खुशी की बात यह है कि हेगड़े इस जांच रिपोर्ट को सौंपेंगे, तो इससे लोकायुक्त साहब को आम जनता की सहानुभूति मिलेगी। साथ ही रिपोर्ट के खुलासे के बाद राज्य सरकार की जो फजीहत होगी, सो अलग।
लेकिन अब सवाल उठने लगा है कि क्या हेगड़े साहब की तरह क्या अगले लोकायुक्त भी दबंग होंगे? क्या उनमें भ्रष्टाचार से लडऩे की कूबत होगी? क्या लोकायुक्त संस्था की कार्यप्रणाली को और अधिक सुदृढ़ कर पाएंगे? क्या लोकायुक्त की ओर से मांगी जा रही मांगें पूरी होंगी? अगर ऐसा होता है, तो हेगड़े साहब की ही जीत होगी। क्योंकि वह भ्रष्टाचार से लडऩे की एक ऐसी नींव तैयार करके जा रहे हैं, जिसे आने वाले कई साल तक नहीं भुलाया जा सकता।

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