क्या फिर खूब लड़ेंगी मर्दानी?


अगर आज कांग्रेस अपने शासन के पांच साल पूरे किए हैं तो सिर्फ सोनिया गांधी की वजह से. पिछले दस साल से सोनिया लड़तीं आ रही हैं और इसी बदौलत वो बन गई खूब लड़ीं मर्दानी. कांग्रेस में उनके साथ उनके लाड़ला-लाड़ली आ जाने पर भी वह अपनी लड़ाई अपने बलबूते पर आगे भी जारी रखना चाहती हैं. मंगलवार को पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते हुए उसने एक बार फिर अपने प्रधानमंत्री बनाने की सारी अटकलों को दर किनार करते हुए मनमोहन सिंह के ही हाथ में कमान सौंपने की इच्छा जगजाहिर कर दी. जहां हर नेता अपनी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी ठोकता हुआ नजर आ रहा है वही पर सोनिया एक सुलझी हुई राजनेता का परिचय दे रही हैं. सोनिया गांधी का पांच साल पहले भी ऐसा ही देखने मिला था. उस समय विश्व जगत में सोनिया छा गई थीं. इससे एक बात तो साफ़ हो गई है कि सोनिया उनमे से एक हैं, जो समय आने पर कठोर फैसले लेना अच्छी तरह से जानती हैं. साथ ही वह अपने निर्णय से तनिक भी निराश नहीं होती हैं. कुछ ना कुछ बात तो है सोनिया गांधी में, उनके व्यक्तित्व में, उसकी बातों में, उनके फैसलों में. जो हर बार लोगों को दिल से छू जाती हैं. कुछ लोग आज भी उसकी हिंदी बोली पर सवाल उठाते हैं. कहते हैं कि जिस महिला को अभी तक हिंदी बोलना तक ठीक से नहीं आता हो, भला देश को कैसे चला सकती हैं, और यही लोग ऐसे भी कहते हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो नाममात्र के पद पर बने हुए हैं असल में इसकी डोर तो सोनिया गांधी के हाथ में हैं. अब इसमें भी तो यही बात साबित हो रही है कि देश को सोनिया ही चला रही हैं. फिर उन लोगों को इस तरह की दोहरी बातें करने से क्या मिलता है? खैर, चुनावी सरगर्मिया तेज होती जा रही. सोनिया ने पार्टी की लगाम खींच रही हैं. पार्टी भी दिनोंदिन नए-नए पछेडों में पड़ती जा रही है. सोनिया उस पर काबू करने में लगी हुई हैं. आने वाले कुछ समय में सोनिया का अनुभव उसके बेटे राहुल गांधी के काम आएगा. हालांकि, राहुल खुद एक परिपक्व नेता बन चुके हैं.

पल्लू पकड़ना नहीं आता था, आज साड़ी बांध रही हैं

यह वही सोनिया गांधी हैं, जिसका कांग्रेस में पर्दापण होने पर उसे साड़ी का पल्लू तक पकड़ना नहीं आता था और आज वही महिला बेहतर ढंग से साड़ी बांध रही हैं. राजनीति में आने के बाद उसने जिन्दगी के कई पहलुओं को जीना सीखा हैं. राजनीति में आने पर उसे कई दिक्कातों का सामना करना पड़ा था. विदेशी महिला का तगमा भी उसी दोरान मिला, लेकिन उसने लड़ाई की हर एक शख्स से, जो उसके खिलाफ था. अंतत उसको मुहं तोड़ जवाब मिला.

बेझिझक हिंदी
जो महिला हिंदी बोलते वक़्त एक ही वाक्य में कई बार अटकती थीं. आज वही बिना झिझक के हिंदी में ऐसे बोलती हैं जैसे उसने हिंदी में एमए कर लिया हो. फिर इसी महिला को कहा पर जनसमर्थन नहीं मिलेगा, जो गन्दी बस्तिओं में जाकर महिलाओं से गले मिलती हों. उनके हाथों से बनी रोटियां खाएंगी.


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