करिश्मा

मैसूर से 45 किलोमीटर दूर दूसरी 'काशी' के नाम से विख्यात तीर्थ 'तलकाड़' में कर्नाटक सरकार की और से आयोजित पंचलिंग दर्शन महोत्सव के तहत बाबा के दर्शनों से 'धान-धन्य' होने के बाद फूलों की नगरी बेंगलूरु शहर की तरफ निकलने के इरादे से, जैसे ही मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर में दर्शन कर करीब 300 सीढ़ियां उतर के नीचे आकर एक निजी बस चालक को पूछा तो जवाब मिला, मुश्किल हैं. फिर भी आप मुख्य सर्किट बस स्टैंड पर जाकर मालूम कर लो. हो सकता कोई जुगाड़ बैठ जाए. सरकार के पुख्ता बंदोबस्त में से एक सर्किट बस स्टैंड पर पूछा तो केएसआरटीसी के एक सरकारी आदमी ने कहा, यह बस जाएगी. उस सरकारी आदमी ने कन्नड़ में और क्या कहा मेरे सिर के ऊपर से निकल गया. जैसे-तैसे कर बस में बैठ गया. बैठ क्या गया मानो सो गया. बस में जगह इतनी थी, जैसे देश की एक अरब पंद्रह करोड़ आबादी में से सिर्फ दो ही लोग बचे हो. एक बार तो लगा 2012 में घटित होने वाली घटना कुछ देर पहले ही घटी हो. ख़ैर, बस चालक ने कन्नड़ में पूछा, मैंने कहा भैया बेंगलूरु जाना है. बस चालक की भावनाओं को मैंने महसूस किया, अगर कोई डाकू भी होता तो प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता. उसने इस 'अजनबी' शहर में 'अजनबी' शख्स को जितना मान-सम्मान दिया, उसके आगे मैं 'नतमस्तक' हुए बिना नहीं रह पाया. जैसे ही उसने मुख्य सर्किट बस स्टैंड पर बस रोकी और दूसरे बस चालक को आवाज लगाई, कोई बस बेंगलूरु के लिए रवाना होगी क्या. जवाब आया नहीं. बस चालक ने कहा, 'बाबूजी' अब तो बस सुबह ही जाएगी. सिर्फ रात 8 बजे तक ही बसें रवाना होती हैं. ...और अब तो रात 9 बजे हैं. आप यहीं पर किसी कमरे में किराए से रह जाओ. आप कहो तो आपको वापस तलकाड़ ले चलूं. कुछ ही मिनट में तलकाड़ पहुंच गए. बसवाले ने एक दुकान पर पूछा कोई कमरा किराए पर मिलेगा, सिर्फ रात भर के लिए. जिसकी हमें उम्मीद थी वही हुआ. उसका जवाब न में था. बस चालक ने कहा आप गांव में कुछ दूर भीतर जाकर किसी से मालूम कर लो, आपको कमरा जरूर मिलेगा. बसवाले को शुक्रिया कह कर उम्मीद की किरण लिए गांव की तरफ रवाना हो तो गया. लेकिन नतीजा 'नो रूम'. हार तक एक ढाबे में चाय पीने चला गया. चाय तो सिर्फ बहाना था. ढाबेवाले को पूछा यहां आसपास कोई कमरा मिलेगा. उसने कहा 'परदेसी बाबू' हो. मैंने गर्दन हिलाकर हां किया. ऐसा करो आप पीडब्ल्यूडी ऑफिस चले जाओ. वहां आपको कमरा अवश्य मिल जाएगा. भटकता-भटकता, पूछता-पूछता चला तो गया 'ठीकाने' पर. भीतर से कोई आया उसने पूछा. मैंने अपना कार्ड दिखाया, निवेदन किया लेकिन बात न बन सकी. उसने शहर की तरफ जाने का सुझाव दिया. उसने अपने एक साथी को मुझे मोटरसाइकिल पर छोड़ने को कहा. उसने मुझे उसी मुख्य सर्किट बस स्टैंड पर लाकर छोड़ दिया और कहा यहीं से बस मिलेगी. बस तो आ न सकी, लेकिन आंखों में नींद आना शुरू हो गई. कुछ दे खड़ा रहने के बाद बस स्टैंड पर जाकर अपना बैग सिराने लगाकर और जैकेट से मुंह ढक कर सो गया. रोशनी के कारण सारे कीट-पतंगे मेरे ऊपर ही मंडराने लगे. लेकिन पूरी रात कीट पतंगों के साथ ही निकालनी पड़ी. सुबह मैसूर जाने की तैयारी में था, क्योंकि बस वहीं से मिलने वाली थी. सुबह 5.45 बजे बस कंडक्टर की आवाज कान में पड़ी मैसूर, मैसूर, मैसूर. आंखें खुलीं बैग उठाकर बस की तरफ भागा. किस्मत दगा दे गई, वहां पहुंचा तो बस निकल चुकी थी. कुछ दूर पीछे भागा, लेकिन बस की दूरी उतनी ही बढ़ती गई. मैं हार गया. ...और वापस आकर मैसूर जाने वाली दूसरी बस की उम्मीद में बैठ गया. एक बच्चा चाय की आवाज लगते हुए आया. इशारे से उसे अपनी तरफ बुलाया. उससे एक चाय लिया. गांव की दिनचर्या शुरू हो चुकी थी. ग्रामीण कामकाज के लिए शहर की तरफ रवाना हो रहे थे. स्टैंड पर भीड़ बढ़ने लगी. मुझे खांसी आई, मुंह से धुंआ निकला. ठण्ड महसूस होने लगी. जैकेट की चेन बंद कर ली. ठण्ड रुक नहीं पा रही थी. फिर सोचा पूरी रात बिना कुछ औढ़े कैसे काट ली. सुबह सात बजे दूसरी बस रवाना होने वाली थी. बस आई, उसमें बैठ गया. बस रवाना हुई. नजर हरे भरे खेतों पर पड़ी. देखा तो पूरे खेतों में दूर-दूर तक धुंध छा रही थी. आसमां से पूरी रात ओस गिरती रही. और मुझे इसका जरा भी एहसास न हो सका. शायद यह 'चमत्कार' बाबा पंचलिंग दर्शन के कारण ही संभव हो सका.

टिप्पणियाँ

  1. पंचलिंग दर्शन महोत्सव के बारे में जानकर अच्छा लगा.

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  2. भैया, दार्जलिंग के दर्शन तो आपने बढ़िया कराये, पर आपकी दशा पर तो हम भी बिना सर्दी के सिहर उठे। मुझे लगा जैसे मैं आपके साथ घूम रहा हूं और आपके साथ-साथ मैं भी ठण्डा हो रहा हूं। बहुत खूब, धन्यवाद्।

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