बतौर पत्रकार पांच साल पूरे

बतौर पत्रकार आज पांच साल पूरे हो गए। बहुत कुछ सीखा। और यह क्रम आगे भी जारी रहेगा। अब तक के सेवाकाल में ऐसे साथी भी मिले, जो अपने आप में खुद एक संस्थान या विश्वविद्यालय माने जाते हैं। यानी, हम उनका सान्निध्य पाकर 'सौभाग्यशाली' रहें। कभी कदम डगमगाए तो ऐसे साथी मिले, जिन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया। हम यह तो नहीं कहेंगे कि इस काल में बहुत दुनिया देखी है, बल्कि यही कहूंगा कि अभी तो सारी दुनिया जानने-पहचानने के लिए हमारे सामने हैं। कहा जाता है अखबारी दुनिया में टिकना बहुत मुश्किल है। हर राही के पग-पग पर ढेरों कांटे होते हैं, लेकिन उन्हें पार करना ही 'सच्चाई' की निशानी है। पारिवारिक सहयोग मिलना हमारे लिए प्रेरणादायक रहा। कभी टूटता हूं, तो 'अम्मा-बावजी' को याद करता हूं। और हमारी सारी दुविधा नतमस्तक जान पड़ती है। अपनी पत्रकारिता की शुरुआत का पहला दिन आज भी याद है, जो बिल्कुल स्कूल के पहले दिन की तरह था। स्कूल में जहां नन्हें हाथों में स्लेट और पैंसिल नहीं पकड़ पाता था, वहीं अखबारी दुनिया में कदम रखने के बाद खबर कौशल के बारे में अनभिज्ञ था। एक अधिकारी से बातचीत का सलीका-तहजीब, क्या करना है क्या नहीं, कहां बैठना है कहां नहीं, किससे बात करनी है किससे नहीं, खबर कैसे निकलती है, किस विषय पर काम कब करना है, अपने वरिष्ठ साथियों से कैसे बोलना है आदि-आदि। कहीं गलती भी हुई तो फौरन माफी मांगी। आज भी मांगता हूं। गुलाबी नगर (जयपुर) से पत्रकारिता शुरू की, जो हमारा आवास भी है। जहां हम विद्यालय से निकलकर महाविद्यालय और महाविद्यालय से निकलकर विश्वविद्यालय परिसर तक पहुंचे। राजस्थान विश्वविद्यालय में शरण पाकर हमने डबल एमए जरूर कर ली, लेकिन अखबारी दुनिया में आगमन के बाद से हमें लगने लगा कि हमने यहां आकर विश्ववृत्त अनुसंधान या सामान्य भाषा में पीएचडी शुरू कर दी, जो इस क्षेत्र में रहने तक सिलसिला जारी रहेगा। हमारे जिंदगी के लिए 01 जून नवीन परिवर्तन के साथ नए 'जन्म' के रूप में भी आता है, जो ठीक हमारी पैदाइशी तारीख से 30 पहले आता है। हम ऋणि हो गए उस दाता के, हम ऋणि हो गए अखबारी दुनिया के, हम ऋणि हो गए उस शख्सियत के जिन्होंने हमें पत्रकारिता के द्वार तक पहुंचाया, हम ऋणि हो गए हमारे श्रेष्ठ दोस्तों के, ...और ना जाने किस-किस के? ...और इस ऋण को हम चुका पाएंगे यह हमारे बूते से बाहर लगता है। क्योंकि यह ऋण कामकाज से संबंधित न होकर प्रेम, अपनत्व, स्नेह, व्यवहार, भाईचार, संबंध से है।
आप सोच रहे होंगे कि बहुत से पत्रकार अपने कड़े अनुभव साझा करते हैं। अनुभव हमारे भी कड़वे रहे हैं, लेकिन यहां हम उनका जिक्र नहीं करना चाहते हैं। जब भी रोजाना सुबह उठता हूं, तो नई ऊर्जा, उत्साह, जोश के साथ काम करने की प्रतिज्ञा लेता हूं, जी-तोड़ कोशिश करता हूं। भले ही कई बार उसमें कामयाब ना हो पाऊं। लेकिन उस दिन की मेहनत, आगामी दिनों में काम आती है। जैसे हर मुसाफिर में आगे बढऩे की ललक होती है, ठीक वैसे ही हमारी मंजिल भी उसी तरह है जैसे 'दिल्ली अभी दूर' है। खैर, सहर अफताब आफात लाएगा या आब-ए-आइन। अंततोगत्वा, यह सब कुदरत के हाथ में है। हम यही कहेंगे कि इस दिन हमें कोई बधाई ना दें... आशीर्वाद दें, दुआ दें और प्यार दें।

नमस्कार...!

टिप्पणियाँ

  1. आपको हमारी तरफ से बधाई

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  2. आधा दशक पूरा करने पर मेरी ओर से बधाई। आगे के लिए शुभकामनाएं। खूब आगे बढिए।
    http://udbhavna.blogspot.com/

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  3. badhai bhai, mujhe is line me aaye 9 sal ho gaye fir bhi apne ko baccha, nausikhiya hi manta hu..... shubhkamnayein....

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