बकवास... खबर...
खबर छोटी हो या बड़ी लेकिन उस पत्रकारों की नजर अलग-अलग होती है। हो सकता है कोई खबर किसी पत्रकार के लिए बकवास हो लेकिन वही खबर किसी अन्य पत्रकार की नजर पडऩे पर उससे शोहरत हासिल कर लेता है। एक ही खबर पर डेस्क भी राय में भिन्नता होती है। पहले तो मामला रिपोर्टर और संपादक के बीच में ही आकर फंस जाता है दोनों का नजरिया अलग-अलग होता है। कई बार दोनों के बीच में बात बनती नहीं तो कई बार दोनों की समान राय बनती है। खबर कोई भी हो उसे प्रकाशित होना ही होता है या तो वह रिपोर्टर की नजर से प्रकाशित होती है या फिर डेस्क या संपादक की नजर से। लेकिन उद्देश्य एक ही होता है कि प्रकाशित होने वाली खबर पाठकों को पसंद आए उसकी सराहना हो और अखबार का नाम हो। रिपोर्टर की कोई खबर किल होती है तो उसके काफी भला बुरा कहता है। किल वही खबर होती है जिसका कोई औचित्य नहीं होता। कोई कहता है कि खबर में ज्यादा से ज्यादा तथ्य होने चाहिए और कोई कहता है कि जरूरी तथ्य ही होने चाहिए। कोई यह भी कहता है कि कम तथ्यों से भी खबर ज्यादा असरकारक बनाई जा सकती है। अक्सर ऐसा होता भी है। कई बार ऐसा भी होता है कि फील्ड में घूमने के बाद भी उसके हाथ कुछ नहीं आता और कई बार ठाले बैठे ही उसके पास सनसनीखेज खबर आ जाती है। पत्रकारिता के कोई नियम कायदे नहीं है जो जैसा चाहे वैसे पत्रकारिता करता है।
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