पहले कभी नहीं रहा इतने दिन 'सन्नाटा'


जयपुर का रामगंज विविधता से भरा है। जहां हर त्योहार पर उत्साह-उमंग का रंग नजर आता है। यह शहर का सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला इलाका है। यहां की संकरी-संकरी गलियां अनजान राहगीर को बंद सी नजर आती हैं लेकिन आगे बढ़ते हैं तो वह मुकाम तक पहुंचाने वाली सड़क से जाकर मिल जाती हैं। घुमावदार गलियां चकित करती हैं। बाजार हमेशा गुलजार रहता है। जहां जरूरत की हर चीज मिल जाती है और सस्ती भी। इसे जयपुर का सस्ता बाजार भी कहते हैं। लेकिन नोवेल कोरोना वायरस (कॉविड 19) के कहर से सब थम गया है। करीब 24 दिन से रामगंज में लॉकडाउन-कर्फ्यू लगा है। बढ़ते संक्रमण से हर किसी की जान हलक में अटकी हुई हैं। असावधानी व लापरवाही की वजह से न जाने यह किस दरवाजे पर दस्तक दे दें। यहां सड़कों पर सन्नाटा है। बाजार बंद है। आसमान पर ड्रोन मंडरा रहे हैं। पाबंदी इतनी है कि मुख्य सड़क पार करके दूसरी तरफ भी नहीं जा सकते। हर नाके पर पुलिस तैनात है। सड़क से मिलने वाले रास्ते बंद हैं।


जो होटल व रेस्तरां आबाद रहते थे उन पर ताला लटका हुआ है। जयपुर का सबसे बड़ा मछली बाजार वीरानी पड़ा है जबकि इसके सामने ही लुहारों के खुर्रे से लोहे के सामान बनाने की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ रही। प्रसिध्द सिध्दि विनायक, जुगल जोड़ी, शनिदेव, लाड़ली जी के मंदिर के पट बंद हैं। रहमानिया सहित सभी मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ने पर पाबंदी है। अजान जरूर होती है। हीदा की मोरी गुरुद्वारा की ओर से जरूरतमंदों को भोजन बांटने का काम किया जा रहा है। जहां खंदे पर फूल मालाएं बिकती थीं वे तख्ते भी खाली पड़े हैं।

रामगंज ऐसा इलाका है जहां पिछले कुछ समय में ई-रिक्शा की संख्या बढ़ी है लेकिन अभी सड़क से दूर है। संजय बाजार भी कई सप्ताह से हाट बाजार का इंतजार कर रहा है। यहां घाटगेट दरवाजे के भीतर प्रवेश करते ही भारी यातायात से जूझना पड़ता था लेकिन अब कोई वाहन नजर नहीं आता।
राजस्थान में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में इस छोटे से इलाके में सबसे तेजी से संक्रमण फैल रहा है। किसी एक राज्य से भी ज्यादा पॉजिटिव (400 से अधिक) मिल चुके हैं जबकि कोरोना को मौत से कम कुछ मंजूर नहीं। कम्युनिटी ट्रांसमिशन के खतरे के कारण लोग दहशत में हैं। मेडिकल टीम घर-घर सर्वे और स्क्रीनिंग कर रही है लेकिन एक लाख से भी ज्यादा की आबादी वाले इस इलाके में जन असहयोग के कारण सफलता नहीं मिल पा रही है। इलाके की बसावट ने भी मुश्किल खड़ी कर दी है। कई इमारतें ऐसी हैं जिसमें 100 से 150 लोग निवास करते हैं। यहां भीलवाड़ा मॉडल भी विफल दिख रहा है। हाल यह है कि मेडिकल टीम को देखकर लोग दरवाजे बंद कर लेते हैं। बहुत समझाने के बाद स्क्रीनिंग को तैयार होते हैं। पुलिस को भी मेडिकल टीम के साथ जाना पड़ रहा है। कर्फ्यू के कारण खाने की भी बड़ी समस्या बनी हुई है।

रामगंज में अधिकांश दिहाड़ी मजदूर रहते हैं। सरकार हर जरूरतमंद के पास राशन सामग्री पहुंचाने का दावा कर रही है लेकिन इलाके के मोहल्लों में होम डिलीवरी नजर नहीं आ रही। अभी सब बेरोजगार बैठे हैं। दिहाड़ी मजदूर मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। किसी के पास खाद्य सामग्री खत्म हो गई है तो किसी के पास खरीदने के पैसे नहीं है। दूध की सप्लाई में भी कटौती हो गई है। फल-सब्जी के ठेले जरूर आ जाते हैं। कभी यहां घर-घर में नगीनों का काम होता था लेकिन लंबे समय से मंदी की मार झेल रहे रत्न व्यवसाय के कारण पहले ही काम कम हो गया था। लेकिन अभी जयपुर का यह इलाका नगीनों का गढ़ माना जाता है। लॉकडाउन से पहले तक नवाब का चौराहा रोज शाम को नगीना मंडी में तब्दील हो जाता था। लेकिन यह भी हालात सामान्य होने की राह ताक रहा है। शाम के वक्त फव्वारों से आभा बिखेरता रामगंज चौपड़ पर अब स्वास्थ्य जांच छावनी बनी हुई है। रामगंज की अंदरूनी गलियों में लॉकडाउन का असर नजर नहीं आता। लोग गलियों में घूमते मिल जाएंगे। लोग घरों की छतों पर नजर आते हैं। बच्चे पतंगें उड़ते दिखते हैं। ढाई साल पहले यहां उपद्रव के कारण कर्फ्यू लगा था लेकिन चार-पांच दिन बाद हट भी गया था लेकिन स्वास्थ्य को लेकर लगा यह कर्फ्यू न जाने और कितने दिन चलेगा। कर्फ्यू से जिंदगी सिमट कर रह गई है। लेकिन यह जरूरी भी है। क्योंकि घर में रहेंगे तो ही सुरक्षित रहेंगे।
(एक स्थानीय बाशिंदे की कलम से)


टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट