सोनागाछी की एक और दास्तां

दो साल पहले कोलकाता में नया नया कदम रखा ही था। उस वक्त मैं कोलकाता महानगर के बारे में बस इतना ही जनता था कि यहां हावड़ा ब्रिज ​है। ​हावड़ा ब्रिज के नीचे गंगा नदी (हुगली नदी) बहती है, मैं इससे वाकिफ नहीं था। यहां आने के बाद ही मुझे यह पता चला। मैं यह भी नहीं जानता था कि गंगा और हुगली नदी एक ही है। एक शख्स से, जो हिन्दी भाषी था उससे पूछा कि यह हुगली नदी है न, तो उसके कहा गंगा है। मैं थोड़ा अचरज में पड़ गया क्योंकि गूगल मैप में यह हुगली नदी के नाम से इंगित था। हावड़ा ब्रिज के नीचे घाट पर करीब एक घंटे तक बैठा रहा। घाट पर भगवान शिवजी का एक छोटा सा मंदिर भी था। हावड़ा ब्रिज को रवींद्र सेतु के नाम से भी जाना जाता है।

घाट पर कुछ और भी लोगों से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि गंगा और हुगली नदी एक ही है। बांग्ला भाषी लोग इसे हुगली नदी कहते हैं। तब मुझे समझ आया कि यह एक ही नदी है। हालांकि यहां आते आते गंगा नदी का पानी मटमैला सा हो जाता है। लेकिन नदी घाट पर स्नान के लिए भीड़ लगी रहती है। ​इसमें अधिकांश लोग मजदूर वर्ग से थे या फिर कोलकाता घूमने आने वाले। यहां भ्रमण पर आने वाले मोबाइल से सेल्फी या फोटो लेते नजर आ रहे थे।

कोलकाता में पहले ही दिन मैंने जगह—जगह फुटपाथ पर लगे नलों से बड़ी मात्रा में पानी बहता हुआ था। यह पानी भी मटमैला सा था। लेकिन लोग उसमें नहा भी रहे थे
। पता चला कि यह पानी गंगा नदी का ही है जो नलों में आता है। समय निर्धारित है, इन्हीं नलों में साफ पानी भी होता है जो पीने के काम होता है। नल के पास बैठकर उस पानी से लोग नहीं नहा सकते। क्योंकि आसपास के दुकानदार, किरायेदार व लोग यहां पानी भरने के लिए आते हैं। नल पर बैठकर अगर नहाना है तो उसी पानी से नहाना पड़ेगा।

घाट से लौटते वक्त हावड़ा ब्रिज के पास ही फूल मंडी लगी थी। मंडी में विभिन्न किस्म के फूल बिक रहे थे। एक दुकानदार से पता च​ला कि फूलों की बड़ी मंडी है जहां से देशभर में फूलों की आपूर्ति की जाती है। मंदिरों में होने वाले उत्सवों में भी यहां से फूल मंगवाए जाते हैं। मंडी में बिक रहे फूल देखकर लग भी रहा था कि यह कितनी पड़ी फूल मंडी है। विक्रेता फूल बेचने के लिए आवाज लगा रहे थे। ग्राहक मोलभाव कर रहे थे। ये फूल अपनी तरफ आकर्षित कर रहे थे।

कोलकाता में मैंने अपना पहला कदम सियालदह रेलवे स्टेशन रखा। उस वक्त ट्रेन अपने निर्धारित समय से करीब साढ़े सात घंटे देर से पहुंची थी। यानी ट्रेन को शाम चार बजे पहुंचना था लेकिन रात साढ़े 11 बजे पहुंची। जबकि कोलकाता में मेरे रहने का कोई ठिकाना भी नहीं था जैसे तैसे करके मैं पीली टैक्सी में सवार होकर एक होटल में पहुंचा। टैक्सी वाले ने मुझसे 300 रुपए लिए, जबकि होटल स्टेशन से बहुत ज्यादा दूर नहीं था। लेकिन जैसे मैंने पहले ही कहा, मैं कोलकाता में कुछ नहीं जानता था। लेकिन एक बात थी, मैं कोलकाता में अच्छे से घूमना चाहता था, यहां का चप्पा चप्पा देखना चाहता था।

हां, एक बात और कोलकाता महानगर, जिसे सिटी आफ जॉय भी कहा जाता है, के बारे में सुना था​ कि यहां सोनागाछी भी है। सोनागाछी, जो देश में सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। यहां आने के बाद ही पता चला कि सोनागाछी को शोभाबाजार के नाम से भी जाना जाता है। यहां  आमजन के बीच शोभाबाजार ही ज्यादा प्रचलित है। रात में निवास पर ही एक साथी ने बताया कि शोभाबाजार में एक बहुत बड़ी बाड़ी है। यह बाड़ी दूर से ही दिख जाएगी। 

हावड़ा ब्रिज देखने के बाद मेरी तमन्ना शोभाबाजार देखने की हुई लेकिन शोभाबाजार है कहां, यह नहीं जानता था। फिर गूगल मैप में देखा तो मेरे निवास से मुश्किल से 800 मीटर दूर ही शोभाबाजार इंगित था। मैं शोभाबाजार की तरफ निकल पड़ा। काफी दूर चलने के बाद भी मैं शोभाबाजार नहीं पहुंच पा रहा था। फिर मैं कहीं संकरी गलियों में निकल पड़ा, परंतु ये संकरी गलियां सुनसान पड़ी थी। मैं जल्दी जल्दी उन गलियों से निकला और चहल पहन वाली सड़क पर फिर से पहुंच गया। लेकिन मुझे वह स्थान अब तक नहीं मिला था जिसे मैं देखने की तमन्ना रखता था। वहां पास ही मां काली का एक मंदिर था जहां मैंने दर्शन किए। कुछ देर बैठा रहा। फिर वहां से अपने निवास की तरफ निकल पड़ा। मां काली के यहां जगह जगह मंदिर मिल जाएंगे। लेकिन न तो मैं अब तक शोभाबाजार पहुंच पाया था और न ही उस बाड़ी को ढूंढ पाया था। 

मैं किसी से यह भी नहीं पूछ सकता था कि सोनागाछी कहां है? इतनी मशहूर जगह के बारे में पूछना, यह उसके लिए अपमान सा महसूस कराने वाली बात होगी। मैं धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रहा था। सोचा ​कि अभी कुछ समय तो कोलकाता में ही बिताना है फिर किसी दिन इस रास्ते पर आएंगेे। धीरे-धीरे चलता हुआ फिर मैं एक जगह फुटपाथ पर रुक गया। 

आने-जाने वाले लोग मेरी तरफ देख रहे थे। जबकि मेरी नजर मेरी आंखों के सामने से जा रही सड़क पर थी। फिर भी लोग घूर घूर कर मेरी तरफ देखे जा रहे थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर लोग मेरी तरफ क्यों देख रहे हैं? फिर सोचा कहीं, ये लोग इस​लिए तो नहीं देख रहे कि मैं कोलकाता में नया हूं। लेकिन जिस शहर की आबादी ही चार करोड़ के करीब है, वहां के लोग नए और पुराने में क्या फर्क कर पाएंगे। यह सोचकर मैं अपने में ही मशगूल था।  

तभी मेरी नजर मेरे आसपास खड़ी महिलाओं और युवतियों पर गई। कुछ साड़ियां, जींस शर्ट, कुर्ता पाजामा, टीशर्ट पहनकर पान, गुटखा आदि चबा रही थी। मुझे सारा माजरा समझ आ गया। मैं उस जगह पर खड़ा था जिसे मैं खोज रहा था फिर भी मैं यह अब तक नहीं समझ पा रहा था कि मैं आखिर खड़ा कहां हूं। मेरे होश फाख्ता हो गए जब एक युवती ने आकर कहा, चलेगा क्या। पहला एपिसोड... 

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