लग जाए सोमनाथ का "शाप"
बेंगलूरु से
संसद में हंगामा मचाने वाले सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का "शाप" लग जाए, तो एक सतयुग की शुरुआत होगी. आखिर ऐसे सांसदों को हंगामा मचाने का अधिकार किसने दिया है. जिसके बल पर वो इतना इतरा रहे हैं. जनता तो रोजाना ही शाप देती है, लेकिन इस बार जनता की आवाज बने भीष्म पितामाह सोमनाथ चटर्जी. इसके लिए वो साधुवाद के पात्र हैं. जनता ने में भी इसकी अच्छी प्रतिक्रया दिखाई दी. हालांकि, बाद में उन्होंने शाप वापस जरूर ले लिया. लेकिन जनता ऐसा हरगिज नहीं चाहती. जनता का फैसला सिरआंखों पर. दरअसल, माजरा यह है कि गुरुवार को लोकसभा में कुछ सांसदों ने जोरदार हंगामा किया. लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी हमेशा इसकी खिलाफत में रहे हैं. जनता भी जानती हैं. चटर्जी के मना करने पर भी वो नहीं मने, जिसके कारण उनको यह कदम उठाना पड़ा. उनके बोलते ही सारे सांसदों में खामोशी छा गई. कोई बोलता भी कैसे दादा ने जो बोला है. सब की सिट्टीपिट्टी बंद हो गई. सबको मालूम हैं कि सोमनाथ की छवि एकदम साफ़ है. चाहे उनकी खुद की पार्टी ने उनका साथ छोड़ दिया हो. राजनीति हलचल को भापते हुए उन्होंने पहले से ही यह घोषणा कर दी कि वह इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनका यह कदम युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए हैं. अगर बात उनके दिए शाप की कि जाए तो ऐसे सांसदों के हारने से भविष्य में इस तरह कि स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. सांसद जरूरी मुद्दें उठाएं. बेकार कि बातों में अपना वक्त बर्बाद न करें. जनता का पैसा यूं ही बर्बाद न होने दें. क्योंकि सांसद सत्र में जनता की गाड़ी कमाई का पैसा लगता है, जो सांसदों के गरिमा में नहीं रहने के कारण पानी में बह जाता है. सांसदों को सोमनाथ के व्यवहार व व्यक्तित्व से प्रेरणा लेनी चाहिए. जिन्होंने किसी को दुःख नहीं पहुंचाते हुए अपना शाप वापस ले लिया.
संसद में हंगामा मचाने वाले सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का "शाप" लग जाए, तो एक सतयुग की शुरुआत होगी. आखिर ऐसे सांसदों को हंगामा मचाने का अधिकार किसने दिया है. जिसके बल पर वो इतना इतरा रहे हैं. जनता तो रोजाना ही शाप देती है, लेकिन इस बार जनता की आवाज बने भीष्म पितामाह सोमनाथ चटर्जी. इसके लिए वो साधुवाद के पात्र हैं. जनता ने में भी इसकी अच्छी प्रतिक्रया दिखाई दी. हालांकि, बाद में उन्होंने शाप वापस जरूर ले लिया. लेकिन जनता ऐसा हरगिज नहीं चाहती. जनता का फैसला सिरआंखों पर. दरअसल, माजरा यह है कि गुरुवार को लोकसभा में कुछ सांसदों ने जोरदार हंगामा किया. लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी हमेशा इसकी खिलाफत में रहे हैं. जनता भी जानती हैं. चटर्जी के मना करने पर भी वो नहीं मने, जिसके कारण उनको यह कदम उठाना पड़ा. उनके बोलते ही सारे सांसदों में खामोशी छा गई. कोई बोलता भी कैसे दादा ने जो बोला है. सब की सिट्टीपिट्टी बंद हो गई. सबको मालूम हैं कि सोमनाथ की छवि एकदम साफ़ है. चाहे उनकी खुद की पार्टी ने उनका साथ छोड़ दिया हो. राजनीति हलचल को भापते हुए उन्होंने पहले से ही यह घोषणा कर दी कि वह इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनका यह कदम युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए हैं. अगर बात उनके दिए शाप की कि जाए तो ऐसे सांसदों के हारने से भविष्य में इस तरह कि स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. सांसद जरूरी मुद्दें उठाएं. बेकार कि बातों में अपना वक्त बर्बाद न करें. जनता का पैसा यूं ही बर्बाद न होने दें. क्योंकि सांसद सत्र में जनता की गाड़ी कमाई का पैसा लगता है, जो सांसदों के गरिमा में नहीं रहने के कारण पानी में बह जाता है. सांसदों को सोमनाथ के व्यवहार व व्यक्तित्व से प्रेरणा लेनी चाहिए. जिन्होंने किसी को दुःख नहीं पहुंचाते हुए अपना शाप वापस ले लिया.
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