फंडा बनाम डंडा

भारतीय जनता पार्टी के वरुण गांधी, जो पिछले लोकसभा चुनाव में अपनी उम्र में कुछ दिनों के फेर के कारण चुनावी मैदान में नहीं उतर सके थे. लेकिन इस बार उनकी उम्र 25 पार कर चुकी हैं. भाजपा को वरुण से काफी उम्मीदें लगाकर बैठी है. लेकिन वरुण के आपत्तिजनक भाषण ने जिस तरह से तूल पकड़ा है उससे पार्टी को कहीं लोकसभा चुनाव में मुहं की नहीं खानी पड़ जाए. साथ ही वरुण के भाषण के भाषण ने यह भी साबित कर दिया कि भाजपा के हर नए-पुराने कार्यकर्ता को राजनीति कि बुरी हवा लग चुकी है. इसीलिए कभी ज्वलंत मुद्दों के धनी वरिष्ट नेता व पार्टी कि और से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी भारत-पाकिस्तान विभाजन करवाने में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले जिन्ना की प्रशंसा कर विवादों की बांसुरी बजाते हैं, जिससे पार्टी ने गहरा नाता रखने वाला आरएसएस नाराज होता है. तो कभी आपस में ही विवाद रखकर विरोध दर्ज कराते हैं. भाजपा को समझना चाहिए कि मतदाताओं को लुभाना आसान काम नहीं हैं. जनता सही समय पर सही जवाब देना जानती हैं. हालांकि, भाजपा ने अपनी स्थापना से ही कड़ी मेहनत करती हुई आई हैं, जिसका फल वह कुछ टुच्ची पार्टियों को अपने साथ मिलाकर हासिल कर चुके हैं या यूं कहें सत्ता का भोग विलास कर चुके हैं. आपत्तिजनक बयां जारी कर इसका दोष भी राजनेता मीडिया पार थोप देते हैं और जब कभी पार्टी सत्तासीन होती है, तो उसका क्रेडिट अपने आपको ही देते हैं मीडिया को नहीं. जबकि मीडिया तो वही दिखाता है जो सच और सही है. इस बार भी भाजपा का मुकाबला सवा सौ साल का अनुभव रखने वाली पार्टी कांग्रेस के साथ होना है. चाहे कहीं किसी कोने में तीसरा मोर्चा अपनी कमजोर ताकत दिखाने के लिए चीक रहा हो. भाजपा के अनुभवी पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भी अब राजनीति में पहले के जितने सक्रिय नहीं रहे हैं, जिससे पार्टी का हर मोर्चे पार बचाव हो सके. भाजपा के लिए यह आत्ममंथन का समय भी है. आपत्तिजनक बयानों से बचने का समय है. जनता के दिलों पार छाने का समय है. भाजपा इसमें कितनी सफल होती है. यह तो वक़्त ही बताएगा, लेकिन राजनीति के गलियारों में हमारी नजर तब तक बनी रहेगी जब तक अगले पांच साल के लिए किसी के हाथ में ना आ जाए.

टिप्पणियाँ

  1. darasal, varun gandhi ke bayan ne nehru gandhi pariwar ki kalusit mansikata se dur hone ka sahas karne kosis ki hai. pahli baar is pariwar ke kisi sadasya ne gandhi ke tathakathit prasangik darshan ka mulaamma utar kar fenkne aur pawitra hone ki choti si hi sahi lekin kosis ki hai. aur gandhi-nehru pariwar ki baputi ko laat marte hue tarkik baat ki hai. nischit rup se chadm budhijivi varun ke bayan par hay-touba machayenge. kya pata varun ka yah bayan us janta, jo is desh ke sansadhan aur samskriti ki asli waris hai, ko jagane mein kamyab ho jaye... aur vote ke chakkar mein aankho patti bandhe bjajapa ke bade netaato ki need tode, taki we khul kar maidan mein aaye aur satta par kaabiz hokar dila sake mahaan wa ekmaatra sachcha dhrma 'sanatan dhrama' ko aur aam jan ki dila sake insaaf...

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