पहले अपने गिरेबान में झांके





पहले अपने गिरेबान में झांके राजनीति हद से ज्यादा गिर चुकी है. राजनेता बोलने से पहले यह कभी नहीं देखता कि उसने अब तक क्या किया है. वो कभी अपनी गिरेबान में नहीं झांकता है. अगर एक बार भी वो यह देख ले तो राजनीती में अपने आप सुधार हो जाएगा. लेकिन लगता है राजनीति ऐसे नहीं सुधरने वाली है. जहां एक तरफ लाल कृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बार-बार एक कमजोर प्रधानमंत्री बताते हों. अगर ऐसे में कोई लाल पीला नहीं हो तो कैसे काम चलेगा. लेकिन यह भी तो सच है कि पिछले पांच सालों में मनमोहन सरकार ने कौनसा तीर मारा है. लेकिन यहां पर एक सवाल यह भी रखना होगा कि इससे पहले राजग सरकार ने कौनसा पहाड़ तोड़ लिया था, जिससे आडवाणी मनमोहन को कमजोर बता रही हैं. बात केवल इतनी ही नहीं है इसके बदले में आडवाणी को अपने प्रतिद्वंद्वियों से क्या-क्या सुनाने को नहीं मिल रहा है. सोनिया गांधी कहती हैं कि जो प्रधानमंत्री अपनी कूठनीति से पाकिस्तान को यह मानाने पर मजबूर कर दिया कि मुंबई के ताज होटल में हमले में पकड़ा गया आतंककारी कसाब पाकिस्तानी नागरिक हैं. लेकिन वह यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि जयपुर, गुजरात, बेंगलूरु में हुए आतंककारी बम धमाकों को रोकने में नाकाम रही. यहां तक कि केंद्र सरकार के हाथ में कोई आतंककारी तक नहीं आया. फिर अपनी कामयाबी का राग इतना क्यों आलापा जा रहा है. सोनिया फिर कंधार विमान अपहरण की कहानी सुनाएंगी, लेकिन चरारे शरीफ को भूल जाएंगी. सवाल यह भी उठता है कि प्रतिपक्ष में बैठने वाला अपने आपको कमजोर क्यों मानता है, अगर वो आवाज उठाए तो जो कुछ भी गलत होगा वो सब कुछ जनता के सामने आ जाएगा कंधार विमान अपहरण कुछ ऐसा ही मामला था. जब प्रतिपक्ष ने अपने आपको कमजोर मान लिया और वाजपेयी सरकार को आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था. पूर्व मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने आने अपह्रत बेटी रूबिया को छुड़वाने के किए आतंकवादी को छोड़ा था. उस केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. इस पर कैसे पर्दा ढाला जा सकता है.लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि बाबरी ढांचा गिराने में कांग्रेस सरकार का हाथ था. जिसने खुद ने चारा घोटाला किया हो उस पर कौन भरोसा करेगा. और वो उस वक्त कहां थे जब बाबरी ढांचा गिराया जा रहा था. तब तो किसी ने जुबान नहीं खोली और आज जब कांग्रेस से नाता नहीं रहा है, तो आरोप लगा कर गन्दी राजनीति खेल रहे हैं. इससे तो यह साबित होता है कि बाबरी ढांचा गिराने में इन्होंने भी सहयोग किया था. उच्चतम न्यायालय ने जब संसद हमले के मुख्य आरोपी अफजल को फांसी की सजा सुनाई, तो कई सेकुलरवादी दल उसके बचाव में आ गए.






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