मंथन
अब मंथन का समय आ गया है. भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस से मिली करारी हार के बाद मंथन करें कि इतनी बुरी पराजय का सामना किस वजह से करना पड़ा. कांग्रेस के पास ऐसा कौनसा शास्त्र था, जो भाजपा को सत्ता में वापसी नहीं करा सका. क्या भाजपा कांग्रेस से हार मान कर बैठ जाएगी या फिर अपनी कमजोरियों को तलाश कर उनको दूर करेगी. क्या भाजपा के पास ऐसा एक भी तुरुप का पत्ता नहीं था, कांग्रेस को बीच रस्ते में ही रोक लेता. क्या जनता भाजपा के वरिष्ट नेता लालकृष्ण आडवाणी को दिल्ली के सिंघासन पर नहीं बैठाना चाहती थी. इससे आडवाणी का भी सपना 'सपना' ही रह गया. असल में भाजपा चुनावों के दौरान भी अपने पार्टी नेताओं की खींचतान में ही उलझी रही, जो उस पर भारी पड़ा. अब होना तो यह चाहिए कि भाजपा पहले अपने आपको राज्य स्तर पर मजबूत करे. जनता की नब्ज को पहचाने कि जनता क्या चाहती है. ठीक वैसे ही जैसे अटलबिहारी वाजपयी के दौरान किया था. जब भाजपा कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों का दबदबा रखने वाले दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रदेश में लगातार तीन बार सीटें बढा रही है, तो फिर और दूसरे राजों में क्यों नहीं. हालांकि भाजपा तमिलनाडु, केरल, आन्ध्रप्रदेश में अभी अपना खाता तक नहीं खोल पाई. भाजपा कहीं न कहीं कमजोर जरूर है. भाजपा को अभी मंथन की जरूरत है, सिर्फ पार्टी मंथन.
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