निकला आठ दशक पुराना 'जिन्न'!

जातिगत आधार पर जनगणना ने यूपीए-2 सरकार को फासीवाद की संज्ञा दे दी है। दरअसल, माना जा रहा है कि इसमें दूरगामी दुष्परिणाम सामने आएंगे। और इसकी शुरुआत जनगणना के आंकड़े प्रकाशित होने के साथ ही हो जाएगी। भारतीय इतिहास से अनजान कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की इस पहल से यादवद्रव (यादव तिकड़ी) भले ही प्रसन्नचित्त हैं। ठीकरा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर भी फूटेगा। प्रधानमंत्री यह कहते नहीं थक रहे कि हमने यह अभिनव पहल की। लेकिन यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि जिस जातिगत आधार पर जनगणना हो रही है अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भी होती थी, पर भारतीय के भारी विरोध के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने घुंटने टेकर सन 1931 में जनगणना का यह आधार बोतल में बंद कर दिया था, जिसे बंद बोतल से इस जिन्न को सोनिया और मनमोहन ने मिलकर वापस बाहर निकाल दिया है, जो देश भर के लिए विनाशकारी और विघटनकारी जान पड़ता है। जिस गुलाम भारत में भारतीयों ने अपना खून बहाकर इस आधार को भारतीयों में फूट डालने वाला करार देकर बंद करा दिया था, वही अब आजाद भारत में शुरू होना शर्मनाक है। देश के किसी भी हिस्से में एक ही जाति अलग-अलग वर्गों में शामिल हैं। एक बार आंकड़े सामने आने के बाद हर जाति, जातिगत आधार पर भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य सरकारी सेवाओं में जाति कोटे के हिसाब से पदों की मांग करेंगे। शिक्षा के क्षेत्र में भी ऐसे ही होगा। मालूम हो उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं देने का फैसला सुनाया था, लेकिन सभी राज्यों ने नौवीं अनुसूची के माध्यम से इसका तोड़ भी निकाल लिया। राजस्थान में 68 फीसदी, महाराष्ट्र में 52 फीसदी, तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण देने प्रस्तावित है। आंध्र प्रदेश में एक लंबी बहस और विरोध के बावजूद मुस्लिम समुदाय को 4 फीसदी आरक्षण प्रस्तावित किया है। ऐसे में जातिगत कोटे के हिसाब से आरक्षण की खाई और चौड़ी होगी। हालांकि, यह बात दीगर है कि प्रबंधन संस्थानों, देश के कई विश्वविद्यालयों में आज भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटे की सीटें रिक्त होने पर सामान्य श्रेणी के छात्र-छात्राओं की भर्ती के माध्यम से भरते हैं। सरकार के इस फैसले के बारे में युवा सांसद भी पीछे खिसकते नजर आ रहे हैं। कोई भी अपनी आवाज बुलंद नहीं कर रहा। बात टालमटोल करने में लगे हैं। ऐसे में युवा सांसदों से क्या उम्मीद की जा सकती है? जबकि बड़ी हसरतों और अरमानों के साथ पलक पावड़े बिछाकर युवा सांसदों को संसद में प्रवेश कराने के लिए उनके पक्ष में मताधिकार का उपयोग कर रास्ता बनाया था। लेकिन उनसे भी देश की आम जनता का भरोसा उठ गया है। अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले में कांग्रेस में युवा सांसदों की लंबी कतार है। पर सब मौन हैं। जबकि इन्हें जाति से ऊपर उठकर सोच विचार करने वाला समझा जाता है, जो शायद गलत है। जातिगत आधार पर जनगणना से भारत आगे की तरफ अग्रसर नहीं होकर पीछे जा रहा है। राजस्थान में वसुंधरा सरकार के दौरान प्रदेश की जो दुर्गति हुई वह किसी से नहीं छिपी है। सिर्फ आरक्षण की लड़ाई के कारण। अभी अशोक गहलोत की सरकार है, लेकिन गुर्जर समुदाय के महापड़ाव डालने की बात करने के साथ ही प्रदेश भर की जनता की सांसें रुक जाती हैं। यहां गुर्जर अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित करने की मांग पर अड़े हैं।

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