अमित शाह के नाम खुला पत्र
अमित शाह जी,
आप राजस्थान दौरे पर आ रहे हैं और जयपुर में दलित परिवार के घर पर खाना भी खाएंगे। अगर आप वास्तव में #दलित #प्रेमी हैं तो आप दलितों के घर पर खाना खाने जाने के बजाय दलितों को अपने घर पर बुलाकर खाना खिलाइए। क्योंकि आप उनके घर पर खाना खाने जाते हैं तो आपके जाने से एक तो दलित परिवार का खर्चा बढ़ जाता है, जबकि यह बात किसी से छुपी नहीं है कि देश में दलितों की आर्थिक स्थिति कैसी है।
क्या आप यह मानते हैं कि दलित आपके या आपके परिवार से भी अधिक सक्षम हैं। मैं यह बोल कर दलितों का अपमान नहीं कर रहा हूं कि दलित परिवार आपको या घर आने वाले किसी मेहमान को खाना नहीं खिला सकते। साधा मेहमान नवाजी में कम से कम वे इतने तो समक्ष है ही कि वे आपको ही नहीं, बल्कि आपके लवाजमे को भी खाना खिला सकते हैं। अगर दलितों को अपने घर पर खाना खिलाने बुलाएंगे तो उनका खर्च बच सकता है। आपका सत्कार अच्छा रहा तो शायद उनको भी यह अच्छा लगे।
मैं एक बात यह पूछना चाहता हूं कि आप या आपकी पार्टी या सरकार के नुमाइंदे अब तक जितने भी दलितों के यहां भोजन ग्रहण करने गए हैं, क्या उन परिवारों की हालत के बारे में दोबारा से जानने की कोशिश की? क्या आपने या आपकी पार्टी या सरकार ने उनसे दोबारा बात की है? क्या कभी उनकी सहायता करने की कोशिश की है? मुझे लगता है कि आज भी वे परिवार उसी तरह से जीवन यापन कर रहे हैं। क्या आपको यह दलितों का उपहास नहीं लगता? अखबारों में और टीवी पर उनके घर की दायनीय स्थिति दिखाई जाती है और उनको उपहास का पात्र बनाया जाता है।
मैं आपको एक रिपोर्ट के हवाले से बताना चाहता हूं कि देश में 37 फीसदी दलित आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं, जबकि 54 फीसदी कुपोषित हैं और प्रति 1000 दलित परिवारों में 83 बच्चों की जन्म के एक वर्ष के भीतर मौत हो जाती है। तकरीबन 40 फीसदी सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को कतार से अलग बैठकर खाना पड़ता है, जबकि 48 फीसदी गांवों में पानी के स्रोतों पर जाने की दलितों को मनाही है।
क्या दलित के घर पर खाना खाने भर से दलितों की स्थिति सुधर जाएगी? देश में ऐसी कोई जगह नहीं जहां पर उनको अपमान का घूंट नहीं पीना पड़ता तो क्या वे सम्मान के साथ जी पाएंगे? यूं तो उंची जाति के लोग दलितों से घृणा का भाव रखते हैं लेकिन दलितों की बहू—बहन—बेटियों पर बुरी नजर रखते हैं। दलित महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं, उनके साथ दुष्कर्म करते हैं तब उनकी उंची कहां चली जाती है। देश में हर 18 मिनट में एक दलित के खिलाफ अपराध की घटना को अंजाम दिया जा रहा है। रोजाना तीन दलित महिलाएं दुष्कर्म की शिकार होती हैं। दो दलित मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। या फिर दो दलित घरों को आग के हवाले कर दिया जाता है यानी उनके घरों को जला दिया जाता है। क्या दलितों के घर पर खाना खाने से फिर कभी दलित महिलाओं को आबरू को कोई खतरा नहीं होगा? क्या आप इस बात की गारंटी देंगे?
देश का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जहां पर दलित समाज के लोगों के साथ मारपीट नहीं की जाती होगी। छोटी—छोटी सी बातों पर उनकी हत्या भी कर दी जाती है। उंचे समाज ठेकेदार दलितों को इतना अधिक प्रताड़ित करते हैं कि उनको आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ता है। शैक्षणिक संस्थानों में उत्पीड़न के कारण पिछले 11 वर्ष में उत्तर भारत और हैदराबाद में 23 दलित छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे दलित कर्मचारियों को भी सताया जाता है लेकिन पारिवारिक हालात अच्छे नहीं होने के कारण आवाज नहीं उठा पाते हैं। आवाज उठा भी दे तो सुनने वाला कौन है।
आपकी सरकार का नारा है 'देश बदल रहा है'। केंद्र में आपकी पार्टी की सरकार को साढ़े तीन साल हो गए, परंतु देश में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया, जिससे दलितों की स्थिति पहले से बेहतर कही जा सके। फिर हम कैसे कह सकते हैं कि 'देश बदल रहा है'।
... तो आप आगे आइए और दलितों के घर पर खाना खाने की बजाय उनको अपने घर पर खाना खाने के लिए बुलाइए। हो सका तो दलित समाज के लोग आपके घर पर खाना खाने आएंगे।
#आपकाहितैषी
दीनदयाल नैनपुरिया
आप राजस्थान दौरे पर आ रहे हैं और जयपुर में दलित परिवार के घर पर खाना भी खाएंगे। अगर आप वास्तव में #दलित #प्रेमी हैं तो आप दलितों के घर पर खाना खाने जाने के बजाय दलितों को अपने घर पर बुलाकर खाना खिलाइए। क्योंकि आप उनके घर पर खाना खाने जाते हैं तो आपके जाने से एक तो दलित परिवार का खर्चा बढ़ जाता है, जबकि यह बात किसी से छुपी नहीं है कि देश में दलितों की आर्थिक स्थिति कैसी है।
क्या आप यह मानते हैं कि दलित आपके या आपके परिवार से भी अधिक सक्षम हैं। मैं यह बोल कर दलितों का अपमान नहीं कर रहा हूं कि दलित परिवार आपको या घर आने वाले किसी मेहमान को खाना नहीं खिला सकते। साधा मेहमान नवाजी में कम से कम वे इतने तो समक्ष है ही कि वे आपको ही नहीं, बल्कि आपके लवाजमे को भी खाना खिला सकते हैं। अगर दलितों को अपने घर पर खाना खिलाने बुलाएंगे तो उनका खर्च बच सकता है। आपका सत्कार अच्छा रहा तो शायद उनको भी यह अच्छा लगे।
मैं एक बात यह पूछना चाहता हूं कि आप या आपकी पार्टी या सरकार के नुमाइंदे अब तक जितने भी दलितों के यहां भोजन ग्रहण करने गए हैं, क्या उन परिवारों की हालत के बारे में दोबारा से जानने की कोशिश की? क्या आपने या आपकी पार्टी या सरकार ने उनसे दोबारा बात की है? क्या कभी उनकी सहायता करने की कोशिश की है? मुझे लगता है कि आज भी वे परिवार उसी तरह से जीवन यापन कर रहे हैं। क्या आपको यह दलितों का उपहास नहीं लगता? अखबारों में और टीवी पर उनके घर की दायनीय स्थिति दिखाई जाती है और उनको उपहास का पात्र बनाया जाता है।
मैं आपको एक रिपोर्ट के हवाले से बताना चाहता हूं कि देश में 37 फीसदी दलित आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं, जबकि 54 फीसदी कुपोषित हैं और प्रति 1000 दलित परिवारों में 83 बच्चों की जन्म के एक वर्ष के भीतर मौत हो जाती है। तकरीबन 40 फीसदी सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को कतार से अलग बैठकर खाना पड़ता है, जबकि 48 फीसदी गांवों में पानी के स्रोतों पर जाने की दलितों को मनाही है।
क्या दलित के घर पर खाना खाने भर से दलितों की स्थिति सुधर जाएगी? देश में ऐसी कोई जगह नहीं जहां पर उनको अपमान का घूंट नहीं पीना पड़ता तो क्या वे सम्मान के साथ जी पाएंगे? यूं तो उंची जाति के लोग दलितों से घृणा का भाव रखते हैं लेकिन दलितों की बहू—बहन—बेटियों पर बुरी नजर रखते हैं। दलित महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं, उनके साथ दुष्कर्म करते हैं तब उनकी उंची कहां चली जाती है। देश में हर 18 मिनट में एक दलित के खिलाफ अपराध की घटना को अंजाम दिया जा रहा है। रोजाना तीन दलित महिलाएं दुष्कर्म की शिकार होती हैं। दो दलित मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। या फिर दो दलित घरों को आग के हवाले कर दिया जाता है यानी उनके घरों को जला दिया जाता है। क्या दलितों के घर पर खाना खाने से फिर कभी दलित महिलाओं को आबरू को कोई खतरा नहीं होगा? क्या आप इस बात की गारंटी देंगे?
देश का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जहां पर दलित समाज के लोगों के साथ मारपीट नहीं की जाती होगी। छोटी—छोटी सी बातों पर उनकी हत्या भी कर दी जाती है। उंचे समाज ठेकेदार दलितों को इतना अधिक प्रताड़ित करते हैं कि उनको आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ता है। शैक्षणिक संस्थानों में उत्पीड़न के कारण पिछले 11 वर्ष में उत्तर भारत और हैदराबाद में 23 दलित छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे दलित कर्मचारियों को भी सताया जाता है लेकिन पारिवारिक हालात अच्छे नहीं होने के कारण आवाज नहीं उठा पाते हैं। आवाज उठा भी दे तो सुनने वाला कौन है।
आपकी सरकार का नारा है 'देश बदल रहा है'। केंद्र में आपकी पार्टी की सरकार को साढ़े तीन साल हो गए, परंतु देश में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया, जिससे दलितों की स्थिति पहले से बेहतर कही जा सके। फिर हम कैसे कह सकते हैं कि 'देश बदल रहा है'।
... तो आप आगे आइए और दलितों के घर पर खाना खाने की बजाय उनको अपने घर पर खाना खाने के लिए बुलाइए। हो सका तो दलित समाज के लोग आपके घर पर खाना खाने आएंगे।
#आपकाहितैषी
दीनदयाल नैनपुरिया
Achha mudda uthaya.
जवाब देंहटाएं